एजेंसी। नई दिल्ली : अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रशस्त किए जाने के साथ ही दशकों पुराने राम जन्मभूमि आंदोलन का भी पटाक्षेप हो गया जिसने हिंदू जज्बात से जुड़े इस मामले को भुनाकर राष्ट्रीय राजनीति में हाशिये से शिखर तक का सफर तय किया।
धर्मनिरपेक्ष दलों के दबदबे वाली राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने के लिए जूझ रही भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में पालमपुर प्रस्ताव में राममंदिर का मुद्दा उठाया था। इसने भाजपा को हिंदूवादी चेहरा दिया और लोकप्रिय चुनावी मुद्दा भी। इसकी बदौलत भाजपा ने गैर कांग्रेसी दलों के साथ गठजोड़ करके 1989 के आम चुनाव में 85 सीटें जीतीं जबकि 1984 में लोकसभा में उसकी 2 ही सीटें थीं। 90 के दशक में जब तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने आरक्षण पर मंडल आयोग की रिपोर्ट मानने का फैसला किया था, तब जातिगत राजनीति की पृष्ठभूमि में एक बार फिर भाजपा के लिए राम मंदिर मामला संकटमोचक बना।
सरकार बनाने के लिए सहयोगी जुटाने की कवायद पड़ी भारी
भाजपा की सफलता में उस आंदोलन की भूमिका के बारे में जेएनयू में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर मनिंद्र नाथ ठाकुर ने कहा कि इसकी भूमिका काफी अहम थी। इससे भाजपा को चुनाव लडऩे के लिए एक चुनाव चिह्न मिला। समान नागरिक संहिता और राम मंदिर जैसे मसलों को दरकिनार करके केंद्र में सरकार बनाने के लिए सहयोगी जुटाने की कवायद भाजपा पर भारी पड़ी और कांग्रेस ने 2004 में उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। भाजपा को सत्ता में वापसी में पूरा एक दशक लगा।