सरकार पर वार:
उदयबीर पठानिया:
सियासत में पुनर्वास के लिए हाथ-पांव चला रहे डॉ. सुशांत इन दिनों पौंग बांध विस्थापितों के लिए जंग लड़ रहे हैं। मसला विस्थापितों की उस व्यथा के साथ जुड़ा हुआ है, जिसमें इन लोगों को पौंग बांध की जमीन पर खेतीबाड़ी से रोका जा रहा है।
बुधवार को भी हमेशा की तरह क्रोधित रहने वाले सुशांत खुद तो शांत मुद्रा में थे, मगर सरकार की छवि को तार-तार करने में लगे थे। जनता के मन की बात वाली नब्ज पर हाथ रखते हुए उन्होंने कई हमले किए। हैरानी की बात यह थी कि डॉक्टर ने पॉलिटिकल ऑपरेशन थियेटर में बिस्तर पर तो बिना नाम लिए एक आजाद और एक भाजपा विधायक को लेटाया, मगर चीरे सरकार के जिस्म पर लगाए। साफ आरोप लगाया कि आजाद विधायक खुद वेटलैंड पर बिजाई करते हैं तो भाजपाई एमएलए साहब अपने लोगों से खेती करवाते हैं। भूखे मर रहे आम आदमी के खिलाफ सरकार मामले दर्ज करती है और धन्नासेठों को पालती है।
सुशांत ने पौंग बांध विस्थापितों के वोट बैंक से लबरेज जवाली, फतेहपुर, देहरा और जसवां का जिक्र करके सरकार को लपेटे में ले लिया। कहा कि सीएम एक तरफ वादा करते हैं कि वेटलैंड पर वह किसानों की खेतीबाड़ी की वकालत करते हैं तो दूसरी तरफ उनके अफसरशाही इसकी मुखालफत में लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करती है और ट्रैक्टर वगैरह बाउंड करती है। अब यह पता नहीं चलता कि हिमाचल के मालिक अफसर हैं या फिर वे किसान जिनकी जमीनें तो सरकारों ने निगल लीं? सुशांत के इशारे साफ थे कि कांगड़ा में किसी की कोई सुनवाई नहीं है।
अफसरशाही सीएम तक को नहीं मानती और सीएम के खास होने के दावे करने वाले विधायक की तूती बोलती है। जयराम ठाकुर से यह सवाल भी पूछ लिया कि क्या हिमाचल में उनके खास लोगों के लिए अलग और आम आदमी के लिए क्या अलग कानून हैं? सुशांत के इशारे साफ थे। मसलन, उन्होंने विधायकों के नाम तो नहीं लिए, मगर सीएम को हर मर्तबा नाम से चुनौती दी।
ठंडे हैं कांगड़ा के मंत्री
सियासत में हर तबके की आवाज में दबका होता है। कांगड़ा लगातार दहकना शुरू हो चुका है। जिस मुद्दे को सुशांत ने उठाया हुआ है, वह 4 विधानसभा क्षेत्रों में 50 हजार से ज्यादा विस्थापित वोटरों के गढ़ हैं। इनका मसला रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ है। ठंडी होती रोटी और दूर होती रोजी का खामियाजा आने वाले दौर में हल्के में नहीं लिया जा सकता। मंत्री चुप हैं।
मानो न मानो यह फैक्टर
राजन सुशांत भले ही मौजूदा दौर में हाशिये पर हैं, पर जो मुद्दा इन्होंने उठाया है, वह आम जनता पर केंद्रित है। सियासत में पैगाम ही असर करते हैं। डॉ. सुशांत की सियासी सेहत का तो पता नहीं, पर जिस तरह से कांगड़ा में सत्ता पक्ष का पक्ष रखने वाला कोई नहीं है, उससे यह तय है कि वक्त रहते इलाज न हुआ तो कमजोरी सरकार के हिस्से में ही आएगी। यह फैक्टर, मजबूती में फे्रक्चर की वजह बन सकता है।
चिंगारी शोला बनी तो नुकसान तय
सियासी माहिर यह मान रहे हैं कि जिस राजनीतिक पुनर्वास की आस में राजन सुशांत लगे हुए हैं, उसे हल्के में आंकना गलती होगी। खतरे की घंटी यह नहीं है कि 2 नए-नवेले विधायकों की वजह से बवाल उठा है। सवाल यह है कि सरकार के इमेज बिल्डर मंत्रियों की मेज पर कोई ऐसी हलचल नहीं है, जिससे सीएम और सरकार को राहत की प्रोटेक्शन वॉल बनती नजर आए।