उदयबीर पठानिया: फतेहपुर में फतह
साल 2019 के उपचुनावों से अलग होगी 2021 की जंग, सरकारी यौवन की ढलान पर बैठी भाजपा का मुकाबला कमजोर कांग्रेस से साल 2019 में दो विधानसभा उपचुनाव हुए थे। एक धर्मशाला में दूसरा पच्छाद में। अब तीसरा उपचुनाव फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में आ गया है। यह उपचुनाव कम और जी का जंजाल ज्यादा है। खासकर सत्तारूढ़ भाजपा के लिए। जी का जंजाल इसलिए कि बीते दोनों उपचुनावों की बात करें तो धर्मशाला और पच्छाद में भाजपा कैसे-कैसे और क्या-क्या सियासी सितम सह कर जीती थी, इससे हिमाचल वाकिफ है।धर्मशाला में सरकार का मुकाबला सीधे तौर पर अपने ही बागी राकेश चौधरी से हो गया था। सोलह हजार से ज्यादा वोट लेते हुए दूसरे नंबर पर रहकर चौधरी ने तगड़ी चोट भाजपा पर कर दी थी। भाजपा को सियासी रगड़ों संग चोटें झेलकर जीत मिली थी। इसी तरह पच्छाद में भी भाजपा को रोते-रोते जीत की मुस्कराहट मिल पाई थी।
उस दौर में सरकार का सियासी यौवन भी उफान पर था। बावजूद इसके वजूद बचाने के लिए सियासी नाक घिसनी पड़ी थी। अब यौवन से दूर हो रही सरकार ढलान पर है। माहौल में दिन-रात का अंतर आ गया है। हालिया जिला परिषद चुनावों में सीएम के गृह जिले से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर तक सरकार अपने बागियों और निर्दलीयों की दयाभाव पर काबिज हो पाई है। जबकि इस बार सबसे घातक खतरा यह है कि जिस जिला कांगड़ा के फतेहपुर में उपचुनाव होना है, उसी कांगड़ा में कांग्रेस ने जोरदार टक्कर देकर भाजपा को सियासी तारे दिखाए हैं। हर दिन सियासी समीकरण बदल रहे हैं।
जनता का माइंड सेटअप भी अब बदल रहा है। फतेहपुर का जो लिटमस टेस्ट सामने आ खड़ा हुआ है, वह इसलिए भी हर एंगल से खतरनाक माना जा सकता है कि जब यह अग्निपरीक्षा होगी तो सरकार के पास भी अपने मौजूदा कार्यकाल का अरसा डेढ़ साल रह गया होगा। ऐसे में यह ग्राउंड जीरो पर होने वाले इस सियासी एसिड टेस्ट में रेस्ट का वक्त किसी के पास नहीं होगा। तमाम मसले ऐसे होंगे कि सियासी मसाले भी देख-परख कर ही इस्तेमाल करने जरूरी होंगे।
( विपक्ष में बैठी कांग्रेस से जुड़ी रिपोर्ट सोमवार को )
पठानिया की लिगेसी…
सुजान सिंह पठानिया ने साल 2009 में तब फतेहपुर का उपचुनाव जीता था, जब प्रदेश में धूमल सरकार थी और डॉ. राजन सुशांत लोकसभा सदस्य बने थे। यानी फतेहपुर का इतिहास गवाह रहा है कि वह सत्ता के साथ चलने का आदी नहीं है। इस बार तो पठानिया के निधन से यह उपचुनाव होने जा रहा है। इतिहास खुद को न दोहरा पाए, यह भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा।
सुख की सांस लेने को वक्त नहीं…
सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें तो वक्त ऐसा है कि सुख की सांस लेने के लिए कोई वक्त नहीं है। माना जा रहा है कि केंद्रीय चुनाव आयोग अप्रैल में वेस्ट बंगाल के आम विधानसभा चुनावों के साथ हिमाचल के इस उपचुनाव को भी निपटा देगा। यानी खींचतान के सरकार पास तैयारी के लिए दो महीने से ज्यादा का वक्त नहीं होगा।
परमार फिर पतवार या…
फतेहपुर में भाजपा को खतरा अपने पुराने दो बागियों डॉ. राजन सुशांत और बलदेव ठाकुर से भी होगा। बीते आम विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कृपाल परमार को अपना खेवनहार बनाया था। पीएम नरेंद्र मोदी तक की जनसभा आयोजित करवाई थी। बावजूद इसके सियासी नाव डूब गई थी।
अब देखना यह होगा कि भाजपा अपनी इज्जत की कश्ती के पतवार किसको थमाती है? बागियों से कैसे निपटती है? परमार पर दांव खेलती है या कोई बदलाव करती है? बहुत कुछ अभी ऐसा होना बाकि है, जिसकी वजह से कुछ अच्छा भी हो सकता है या फिर कुछ भी हो सकता है।