राजेश । शिमला
राज्य सरकार से मान्यता पाने वाले अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर ने बताया कि उनके संगठन को लेकर समानांतर संगठनों द्वारा उठाई जा रही आपत्ति बेबुनियाद है। वह मुख्यमंत्री के आशीर्वाद से कर्मचारियों के सभी लंबित मामलों को सुलझाने के लिए काम करेंगे। ओक ओवर में मुख्यमंत्री से मिलने के बाद मीडिया से बातचीत में अश्विनी ठाकुर ने कहा कि कर्मचारियों के सभी मामले जेसीसी के एजेंडे में शामिल किए जाएंगे।
इनमें छठे वेतन आयोग की सिफारिशे राज्यों में लागू करवाना। नई पेंशन प्रणाली, एनपीएस, 4-9-14 की अधिसूचना लागू करवाना, अनुबंध काल को कम करना। अनुबंध कर्मचारियों की वरिष्ठता के मुद्दे समेत सभी मांगों को सरकार के समक्ष पेश करेंगे। इस तरह की मांगों को शीघ्र कार्यकारिणी का विस्तार करेंगे। डिमांट चार्टर बनांएगे, जीसीसी के लिए समय मांगे सभी कर्मचारियों की मांगे रखे सरका के समक्ष रखेंगे। अब वह वक्त आ गया है कि कर्मचारी अपनी मांगों को सरकार के सामने रखें और उनका हल हो पुरानी पेंशन का मामला अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ प्रमुखता से उठाएगा।
अश्वनी ठाकुर ने गुट को सरकार से मान्यता देने पर कहा कि उन्होंने विभागीय स्तर पर काम किया है। उन्होंने कहा कि महासंघ का चुनाव बेलेट पेपर के माध्यम से होता है। पिछले 18 सालों से पांच चुनाव उन्होंने लगाता जीते है। 56 हजार की विभाग की फेडरेशन को वह रिप्रेजेंट करते है। संविधान के अनुसार सबसे पहले विभागीय स्तर पर काम करना होता है। चार घंटे के अंधर हर विभाग का कर्मचारी एसोसिएशन शिमला पहुंची। शिमला के सभी जिला के निदेशालय से कर्मचारी आए और मुख्यमंत्रा का धन्यवाद किया। ऐसे में अब वह कर्मचारियों की मांगों को सरकार के समक्ष पेश करेंगे।
क्षेत्र विशेष से कर्मचारी नेता थोपे जा रहे : विनोद कुमार
हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित सेवाएं कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार का कहना है कि सरकार का इस तरह से एकतरफा फैसला लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला क्षेत्र विशेष की मानसिकता से घिरा हुआ है। महासंघ की राजनीति को लेकर 1980 में उस वक्त के मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर ने महासंघ को तोडऩे का काम किया था और एक प्रायोजित निर्णय थोपा था। उसको लेकर प्रदेश की कर्मचारी राजनीति में खासा उबाल आया था। रामलाल ठाकुर का पूरे प्रदेश में विरोध हुआ था। उस वक्त भी मंडी से कर्मचारी नेतृत्व थोपा गया था। आज फिर वहीं स्थिति है। साढ़े 3 साल का समय बीत गया।
कर्मचारी महासंघ के चुनाव एक तय प्रक्रिया के तहत हुए। ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर तक का चुनाव हुआ। पूरी प्रोसिंडिंग व डिमाड चार्टर सरकार को सबसे पहले हमने 2019 में मुख्यमंत्री को सौंप दिया था। पूरा कर्मचारी स्तब्ध है सरकार के एकतरफा फैसले से। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है सरकार की क्षेत्र विशेष के लोगों को कर्मचारियों की इच्छा को लेकर थोपना चाह रहे है।
विनोद ठाकुर ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री ने सरकारी आवास में कर्मचारियों को बुलाकर महासंघ को तोडऩे का प्रयास किया है। सरकार ने जिसकों में मान्यता देनी है वह दे। महांसघ अपने आप में खड़ा है। वह अपना काम करेगा। कर्मचारियों की मांगे सरकार तक पहुंचाई जाएगी। अगर सरकार मांगो को नहीं सुनती है, तो दूसरे पक्ष के समक्ष रखेंगे, विकल्प सभी खुले है। राजनेतिक तौर पर यह डिविजन सरकार को महंगा पड़ेगा।